25 मार्च 2016 दिल्ली मेट्रो:
जीवन मत्यु एक साश्वत सच है। ये कितना सच है ये अब पता चल रहा है। जब हम उम्र के ऎसे मोड़ पर है जब एक एक कर के सब अपने चले जा रहे है अपनी अंतिम यात्रा मे।
जब पहली बार पिताजी को उनकी माँ और भाभी की अकस्मात् गुजरने पर बिलखते देखा तो अजीब लगा, कि इतना कठोर आदमी कैसे रो सकता है। पिताजी की आँखो को बहुत ही कम नम होते देखा है।
कुछ वर्ष पूर्व ताऊजी के निधन पर उन्हें रोता देख फिर वही 20 वर्ष पुराना दृश्य आँखो के सामने उमड़ पड़ा, जब पहली बार गंगापुर मे उन्हें छोटी ताई के गुजर जाने की ख़बर सुनकर रोते और माँ को उन्हें चुप कराते देखा था।
ताऊ हमें भी बहुत लाड़ करते थे जिस दिन वो गए उस दिन सुबह से ही बहुत अजीब लग रहा था। शाम होते होते खबर लगी की वो नहीं रहे। ऐसा लगा कि शायद मुझे कुछ अनहोनी का एहसाह था।
गत वर्ष अचानक मुझे पिताजी का फ़ोन आया की फूफाजी AIMS मे एडमिट है, कुछ तबियत ज्यादा ख़राब है, मन बहुत बेचैन हुआ की कही कुछ फिर कोई अनहोनी ना हो गयी हो। एम्स हॉस्पिटल मेरे मेट्रो रूट पर ही आता था। अक्सर सोचता था की न जाने कब एम्स जाना होगा 7 साल हो गए दिल्ली मे पर एम्स नहीं गया था कभी।
बेरहाल् एम्स पंहुचा अपने मन को दिलाशा दे कर की सब ठीक है। कुछ गलत नहीं होगा, पर सब गलत साबित हुआ, फूफा जी नहीं रहे थे।
अपने आप पर बहुत गुस्सा आया की क्यों मे कभी पहले नहीं आया एम्स, मेरा पहली आना इस घड़ी मे ही क्यों लिखा था। मन और बेचेन हो रहा था कि कैसे पिताजी को कहु की फूफाजी नहीं रहे। उनके वहीँ रोने के दृश्य फिर आँखो के सामने घूम रहे थे। ना जाने कहा से ऎसे समय मे हिम्मत आयी और मैंने उन्हें बता दिया।
बहुत ही कम मोखे है जब मैं ऎसे मे हिम्मत जुटा पता हूँ ।
जब पहली बार पिताजी को उनकी माँ और भाभी की अकस्मात् गुजरने पर बिलखते देखा तो अजीब लगा, कि इतना कठोर आदमी कैसे रो सकता है। पिताजी की आँखो को बहुत ही कम नम होते देखा है।
कुछ वर्ष पूर्व ताऊजी के निधन पर उन्हें रोता देख फिर वही 20 वर्ष पुराना दृश्य आँखो के सामने उमड़ पड़ा, जब पहली बार गंगापुर मे उन्हें छोटी ताई के गुजर जाने की ख़बर सुनकर रोते और माँ को उन्हें चुप कराते देखा था।
ताऊ हमें भी बहुत लाड़ करते थे जिस दिन वो गए उस दिन सुबह से ही बहुत अजीब लग रहा था। शाम होते होते खबर लगी की वो नहीं रहे। ऐसा लगा कि शायद मुझे कुछ अनहोनी का एहसाह था।
गत वर्ष अचानक मुझे पिताजी का फ़ोन आया की फूफाजी AIMS मे एडमिट है, कुछ तबियत ज्यादा ख़राब है, मन बहुत बेचैन हुआ की कही कुछ फिर कोई अनहोनी ना हो गयी हो। एम्स हॉस्पिटल मेरे मेट्रो रूट पर ही आता था। अक्सर सोचता था की न जाने कब एम्स जाना होगा 7 साल हो गए दिल्ली मे पर एम्स नहीं गया था कभी।
बेरहाल् एम्स पंहुचा अपने मन को दिलाशा दे कर की सब ठीक है। कुछ गलत नहीं होगा, पर सब गलत साबित हुआ, फूफा जी नहीं रहे थे।
अपने आप पर बहुत गुस्सा आया की क्यों मे कभी पहले नहीं आया एम्स, मेरा पहली आना इस घड़ी मे ही क्यों लिखा था। मन और बेचेन हो रहा था कि कैसे पिताजी को कहु की फूफाजी नहीं रहे। उनके वहीँ रोने के दृश्य फिर आँखो के सामने घूम रहे थे। ना जाने कहा से ऎसे समय मे हिम्मत आयी और मैंने उन्हें बता दिया।
बहुत ही कम मोखे है जब मैं ऎसे मे हिम्मत जुटा पता हूँ ।
मुझे आज भी अपने मौसा जी के निधन पर न जाने का पाप कटोचत है। शायद इसलिए 15 - 16 साल से मौसी के घर नहीं गया कभी। डर लगता है अपराधबोध सा है मन मे।
अब कोशिस करता हूँ की ये गलती दोबारा न करू। सारी वियस्तता के बावजूद ऎसे मौको पर जाने की कोसिस करता हूँ।बहुत भावुक होना शायद तुला राशि वालो की कुंडली मे होता है, मैं अक्सर ऎसे मोखों पर बहुत जल्दी भावुक हो जाता हुँ।
शायद अब दिल और दिमाक इस दुनियाई रीत को समझने लगा है। इस का अहशास् अभी हालिया मे पत्नी की दादी के जाने पर महसूस हुआ। आँखे तो वहाँ भी वो सफ़ेद कुर्सी और चारपाई देख कर नम हो रही थी, 7 दिन पहले ही तो मे देख कर गया था सब। उन्हें पहले अक्सर मेने सफ़ेद कुर्सी पर ही बैठे देखा था पर कुछ माह से वो चारपाई पर आगयी थी।
शायद इस बार भी मुझे कुछ पूर्वअहशास् हुआ होगा तभी तो थकान और घर जल्दी जाने वियसत्ता के बावज़ूद मे कलाई जा कर उन्हें देख आया। अब बस वहीँ आखरी बार सुनी उनकी आवाज़ मेरे कानों मे गूँजती है "बेटा हमतो मरने को पड़े है, न जाने भगवान् कब सुनेगा हमारी"
अब कोशिस करता हूँ की ये गलती दोबारा न करू। सारी वियस्तता के बावजूद ऎसे मौको पर जाने की कोसिस करता हूँ।बहुत भावुक होना शायद तुला राशि वालो की कुंडली मे होता है, मैं अक्सर ऎसे मोखों पर बहुत जल्दी भावुक हो जाता हुँ।
शायद अब दिल और दिमाक इस दुनियाई रीत को समझने लगा है। इस का अहशास् अभी हालिया मे पत्नी की दादी के जाने पर महसूस हुआ। आँखे तो वहाँ भी वो सफ़ेद कुर्सी और चारपाई देख कर नम हो रही थी, 7 दिन पहले ही तो मे देख कर गया था सब। उन्हें पहले अक्सर मेने सफ़ेद कुर्सी पर ही बैठे देखा था पर कुछ माह से वो चारपाई पर आगयी थी।
शायद इस बार भी मुझे कुछ पूर्वअहशास् हुआ होगा तभी तो थकान और घर जल्दी जाने वियसत्ता के बावज़ूद मे कलाई जा कर उन्हें देख आया। अब बस वहीँ आखरी बार सुनी उनकी आवाज़ मेरे कानों मे गूँजती है "बेटा हमतो मरने को पड़े है, न जाने भगवान् कब सुनेगा हमारी"
काश मे अपनी शर्म को भुला कर कुछ देर और बाते कर पता उनसे, पर कहते है ना कि आए हैं तो जाना तो पड़ेगा'।
सब चले जा रहे है अपनी अपनी राह, और शायद हम भी अपनी मंजिल के कही ना कही क़रीब से है।।
जब से तबियत ख़राब हुई है एक अनजाना सा डर लगा रहता है कि न जाने कोन सी बात और कौन से शब्द अंतिम होंगे। कौन करीब और कौन यादों मे होगा।
ये जिंदगी का सफ़र, है कैसा सफ़र कोई जाना नहीं।।